अजोला: कृषि और पशुपालन के लिए वरदान।



अजोला एक तेजी से बढ़ने वाला जलीय फर्न है, जो सामान्यतः धान के खेतों में पाया जाता है। इसे एनाबीना एजोली के नाम से भी जाना जाता है, जो वातावरण से नाइट्रोजन स्थायीकरण के लिए उत्तरदायी होता है। यह एक जैव उर्वरक के रूप में कार्य करता है, जिससे धान की उपज बढ़ती है। इसके साथ-साथ यह पशुओं, मछलीयों, मुर्गियो, भेड़ एवं बकरियों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। अजोला एक सस्ता चारा है, इसे आसानी से कम लागत में घर पर उगाया जा सकता है।

अजोला के गुण

  1. यह जल में तीव्र गति से बढ़ता है।
  2. इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन होता है, पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं।
  3. इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40 - 60% प्रोटीन, 10 -15% खनिज एवं 7-10% अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।
  4. इसके अलावा इसमें विटामिन ( विटामिन ए, विटामिन B12 तथा बीटा कैरोटीन ) विकास वर्धक तत्व एवं खनिज ( कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, कॉपर, मैग्नीशियम इत्यादि) पाए जाते हैं।
  5. यह पशुओं के लिए आदर्श आहार के साथ-साथ एक उत्तम खाद के रूप में भी उपयुक्त है।
  6. यह जानवरों के लिए प्रतिजैविक का काम करती है।
  7. सामान्य अवस्था में या 2 - 3 दिनों में दोगुनी हो जाती है।
  8. इसकी उत्पादन लागत काफी कम होती है।

अजोला का उपयोग



पशु आहार के रूप में - अजोला एक सस्ता, सुपाच्य और पौष्टिक पशु आहार है। इसमें कार्बोहाइड्रेट और वसा की मात्रा कम होती है। अतः पशुओं के लिए यह एक आदर्श आहार है। यह पशुओं में दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ बांझपन निवारण में उपयोगी है, एवं पशुओं का शारीरिक विकास अच्छी तरह से होता है। दुधारू पशुओं को यदि 1.5 - 2 kg अजोला प्रतिदिन दिया जाए, तो दुग्ध उत्पादन में 15 से 20% तक की वृद्धि होती है, एवं दूध की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। पशुओं के अलावा मुर्गियों एवं बकरियों के लिए भी अजोला काफी फायदेमंद है। मुर्गियों को 30 से 50 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से मुर्गियों के शारीरिक भार एवं अंडा उत्पादन में 10 से 15% तक की वृद्धि होती है। भेड़ एवं बकरियों को 150 से 200 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से शारीरिक वृद्धि एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।



उर्वरक के रूप में - इसके अलावा अजोला धान के खेत में उर्वरक के रूप में काफी कारगर साबित हुआ है। धान के खेत में अजोला को हरी खाद के रूप में उगाया जाता है, इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। धान के खेत में 1 किलो प्रति वर्ग मीटर कि दर से उर्वरक में अजोला मिलाकर डालने से तकरीबन ₹2000 प्रति हेक्टेयर की बचत होती है।

वर्मी कंपोस्ट बनाने में - इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट बनाने में भी अज़ोला का उपयोग किया जाता है। वर्मी कंपोस्ट में प्रयोग होने वाले गोबर के साथ अजोला मिलाने से केंचुए का वजन और उसकी संख्या में बढ़ोतरी होती है। वर्मी कंपोस्ट में अजोला मिलाने से उसका पोषक मान बढ़ जाता है।

अजोला की खेती

अजोला की खेती के लिए अलग से जमीन की कोई आवश्यकता नहीं होती। अजोला की खेती जमीन में गड्ढेे बनाकर या ईंट की क्यारियां बनाकर की जाती है, परन्तु ईंट की क्यारियां बनाना ही बेहतर होता है। इसके अलावा यदि जगह का अभाव है, तो अजोला की खेती ट्रे, पशु को चारा खिलाने वाले नाद एवं अन्य पात्रों में भी की जा सकती है। अजोला की सही वृद्धि के लिए जमीन के सतह पर 5 - 10 सेंटीमीटर जल स्तर की आवश्यकता होती है एवं 25 - 28 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है, इससे अधिक तापमान पर अजोला लाल होने लगता है। अजोला की खेती में प्रयोग की जाने वाली मिट्टी एवं पानी का पीएच 5 - 7  होना चाहिए।

अजोला लगाने की प्रक्रिया



  1. सर्वप्रथम 10 इंच ऊंचा, 2.5 मीटर लंबा एवं 1.5 मीटर चौड़ा ईट की क्यारी बना ले।
  2. इसके बाद क्यारी में प्लास्टिक की पन्नी बिछा दे, इसे अच्छी तरह से फैलाकर ईट से दबा दे।
  3. तत्पश्चात क्यारी में उपजाऊ मिट्टी की 3 इंच मोटी परत बिछा दे मिट्टी से कंकड़ पत्थर इत्यादि को चुनकर अलग कर दें।
  4. 5 - 7 kg गोबर ( 2 से 3 दिन पुराना ) 10 से 15 लीटर पानी में घोलकर मिश्रण को चलनी से छान कर मिट्टी पर फैला दें।
  5. अब इस क्यारी में 5 से 10 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी भर दे पानी में यदि झाग बन रहा है तो चलनी की मदद से इसे छान ले।
  6. अब मिट्टी और गोबर के घोल को अच्छी तरह से मिला ले।
  7. इस तरह से क्यारी तैयार करने के बाद उसमें अजोला कल्चर (.5-1 kg) को फैला दें एवं उसके ऊपर पानी का छिड़काव करें ताकि अजोला की जड़े पूरी तरह से व्यवस्थित हो जाए।
  8. इसमें गोबर की जगह पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए 5 किलो ssp के साथ 250 ग्राम पोटाश और 750 ग्राम मैग्निशियम सल्फेट का मिश्रण तैयार करके, तैयार मिश्रण का 10-12 ग्राम अजोला की क्यारी में 1 सप्ताह के अंतराल पर डाले।
  9. 2 से 3 दिनों में अजोला की संख्या दोगुनी हो जाती है और 21 दिनों में पूरी क्यारी अजोला से ढ़क जाती है 1 वर्ग फीट से लगभग 200 से 250 ग्राम अजोला प्राप्त किया जा सकता है।

सावधानियां

  1. अच्छी उपज के लिए संक्रमण मुक्त वातावरण रखना आवश्यक है । क्यारी में गोबर के प्रयोग से कीड़े लगने की संभावना रहती है, इसके लिए carbofuron नामक दवा का प्रयोग करें।
  2. क्यारियों का निर्माण ऐसी जगह पर की जानी चाहिए, जहां पर्याप्त सूर्य की रोशनी मिल सके।
  3. बारिश के मौसम में अधिक वर्षा से अजोला के बह जाने का डर रहता है, इसके लिए सीमेंट की क्यारियां बनाएं एवं उसमें जाली लगा दें।
  4. ठंडे मौसम में ठंड के प्रभाव से अजोला को बचाने के लिए क्यारी को प्लास्टिक शीट से ढक दें।
  5. प्रत्येक 3 महीने के पश्चात क्यारी की मिट्टी एवं पानी बदल दें ताकि अजोला को पोषक तत्व उपलब्ध होता रहे। इस पानी का उपयोग जैविक खेती में किया जा सकता है। सब्जियों, फलों एवं पुष्प में इसका प्रयोग करने से यह वृद्धि नियामक के रूप में कार्य करता है इसके अलावा अजोला से कई जैविक उत्पाद भी बनाए जाते हैं।

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