"पूसा डी कंपोजर" कैप्सूल से कम खर्च में करें, फसल अवशेष (पराली) प्रबंधन
बायो डी कंपोजर क्या है?
बायो डी कंपोजर लाभकारी सूक्ष्माजीवों के एक समूह से बना है, जो फसल अवशेषों, पशु अपशिष्ट तथा अन्य कचरों को गला कर तेजी से जैविक खाद में परिवर्तित करता है। बायो डी कंपोजर में गुड़ और बेसन का घोल होता है, जो मिट्टी में केंचुए के लिए भोजन का कार्य करता है और मिट्टी को उपजाऊ बनाता है।
पूसा डी कंपोजर क्या है?
फसल अवशेष प्रबंधन की यह नई तकनीक 'भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान'(IARI) नई दिल्ली, द्वारा विकसित की गई है, जिसे 'पूसा डी कंपोजर' नाम दिया गया है। इससे बिना खर्चे के पराली को खाद के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। 'पूसा डी कंपोजर' एक प्रकार का एंजाइम है, जिसमें कवक की 8 प्रजातियां शामिल है, जो पराली को मिट्टी में बदलने को 100% कारगर है। पूसा डी कंपोजर के एक किट में 4 कैप्सूल होते हैं, जिससे 1 हेक्टेयर क्षेत्र के पराली को नष्ट किया जा सकता है। इससे पर्यावरण को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचती है।
पूसा डी कंपोजर घोल कैसे तैयार करें-
'पूसा डी कंपोजर' कैप्सूल के रूप में होता है, इसका घोल तैयार कर खेतों में छिड़काव किया जाता है। घोल को तैयार करने के लिए 25 लीटर पानी में 400 ग्राम गुड़ को डाल कर उबालते हैं और फिर उसे ठंडा होने के लिए छोड़ देते हैं। जब मिश्रण हल्का गुनगुना रह जाए तो इसमें 50 ग्राम बेसन डालकर घोल देते हैं, इसके बाद एक कीट जिसमें 4 कैप्सूल होता है, उसे तोड़कर उस घोल में मिला देते हैं और साथ ही कैप्सूल के खोल को भी उसमें डाल देते हैं। अब घोल को अच्छी तरह से मिलाकर मलमल के कपड़े से ढककर 4 से 5 दिन के लिए गर्म जगह पर छोड़ देते हैं ताकि इसमें फंगस पनप सके। यह ध्यान रहे कि पूरे किट का प्रयोग एक साथ करें क्योंकि पूरे कीट में 4 कैप्सूल होते हैं जो 8 कवकों का एक समूह होता है।
'पूसा डी कंपोजर' घोल का प्रयोग कैसे करें-
अब इस घोल का खेत में छिड़काव करें। किसान भाई इसका प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि मास्क, हाथ में दस्ताने, कान में रुई एवं चश्मे का प्रयोग करें ताकि कवक उनके शरीर में प्रवेश न कर पाए। 1 एकड़ क्षेत्र में पराली प्रबंधन के लिए 10 लीटर घोल की आवश्यकता होती है। 10 लीटर घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर पराली के खेत पर छिड़काव करने के बाद उसे रोटावेटर से मिला दें, ताकि पराली खेत में दब जाए। लगभग 15 दिन बाद पराली में गर्मी शुरू हो जाएगी और 25 दिन बाद 90% तक पराली गल जाएगी। पराली के अलावा इसका प्रयोग पत्तियों, फलों एवं सब्जियों के अवशेष इत्यादि को गलाने में भी किया जा सकता है। 1 टन अवशेष को गलाने के लिए 5 लीटर घोल की आवश्यकता होती है। अवशेषों में घोल मिलाकर उसे गड्ढे में दबा देना है, 7 से 15 दिन के अंतराल पर इसकी पलटाई करते रहना चाहिए।
कैसे काम करता है 'पूसा डी कंपोजर'-
'पूसा डी कंपोजर' घोल के प्रयोग के 25 से 30 दिन बाद पराली गल जाती है और जैविक खाद तैयार हो जाता है। इससे मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है। इस प्रकार रसायनिक उर्वरकों पर हमारी निर्भरता कम हो जाती है और अगली फसल से कम लागत में अच्छा पैदावार प्राप्त होता है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
'पूसा डी कंपोजर' उपयोग में चुनौतियां-
किसान भाई जल्दी से जल्दी अपने खेत को खाली कर दूसरी फसल लगाना चाहते हैं, परंतु 'पूसा डी कंपोजर' से पराली को सड़ने में 25 से 30 दिन का समय लगता है। ऐसी स्थिति में उनके लिए विकल्प के रूप में पराली को जलाना ही अधिक सुविधाजनक होता है।
किसान भाइयों से मेरा अनुरोध है कि वह पराली जलाने के बजाय 'पूसा डी कंपोजर' का प्रयोग करें जिससे हमारे पर्यावरण को वायु प्रदूषण से बचाया जा सके एवं मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहे।
Waah aise bhi decompose kar sakte hn
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