बकरी की 7 सबसे अधिक मुनाफा देने वाली भारतीय नस्लें।
बकरी की मुख्य नस्लें
क्षेत्र - बकरी की यह नस्ल मुख्यत: बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मेघालय व असम राज्यों में पाई जाती है।
पहचान
- यह बकरी छोटे कद परंतु गठीला शरीर वाली होती है, इनके शरीर पर छोटे तथा चमकीले बाल होते हैं।
- इसका रंग सामान्यत: काला होता है, परंतु यह हल्के लाल, भूरे या सफेद रंग की भी हो सकती है।
- इनके सिंग छोटे और पैर कम लंबे होते हैं। यह एक अच्छी जनन क्षमता वाली मांस उत्पादक नस्ल है।
- इनके नर एवं मादा दोनों में दाढ़ी होते है।इसका शारीरिक वजन नर 25-30kg, एवं मादा 20-25kg होता है।
विशेषता
- छोटा शरीर होने के कारण आहार, जगह तथा पूंजी कि कम आवश्यकता होती है।
- एक बार में दो से तीन बच्चे देने एवं जल्दी बच्चे देने की क्षमता होती है।
- (2 वर्ष में कम से कम तीन बार)किसी भी वातावरण में जल्द अनुकूल हो जाती है।
- बीमारियों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है।
- अत्यंत उत्तम गुणवत्ता के मांस तथा चमड़े पाए जाते है।
2. जमुनापारी
क्षेत्र - यह नस्लें उत्तर प्रदेश के मथुरा, इटावा और उसके आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है।
पहचान
- यह बड़े आकार की बकरी है।
- इसका रंग सफेद एवं गले व सिर पर धब्बे भी पाए जाते हैं।
- इसकी मुख्य पहचान इसकी नाक होती है, जो उभरी हुई होती है, जिसे रोमन रोज कहते हैं।
- इसके कान लंबे तथा लटके होते हैं।
- इसका शारीरिक वजन, नर - 50-60kg एवं मादा 40-50kg
विशेषता
- यह दूध और मांस दोनों के लिए उपयोगी है।
- यह तेजी से बढ़ता है और अधिक दूध देने की क्षमता होती है।
- दुग्ध उत्पादन- दुग्ध काल (194 दिन) में 200 लीटर
- इसके बकरे 2 साल में मांस लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसका वजन ज्यादा होता है।
- अन्य नस्लों की अपेक्षा इसमें बीमारियां कम होती है।
3. सिरोही
क्षेत्र - इसका प्राकृतिक वास राजस्थान के सिरोही, अजमेर, बांसवाड़ा, राजसमंद और उदयपुर के क्षेत्रों में है।
पहचान
- यह मध्यम ऊंचाई की बकरी होती है।
- इसका रंग भूरा होता है, रीढ़ पर हल्के सफेद व भूरे धब्बे होते हैं।
- इसके कान चपटे तथा नीचे की ओर लटके हुए पतानुमा आकार के होते हैं।
- परिपक्व होने पर इसके गर्दन में हल्का घुमाव एवं पीठ में दबाव आ जाता है।
विशेषता
- यह दूध और मांस दोनों के लिए उपयुक्त है।
- यह 14-16 महीने में दो बार बच्चे देती है, सामान्यत: एक बार में दो बच्चे देती है। बच्चे का वजन 2-3 kg तक हो सकता है।
- यह 18 से 24 महीने में परिपक्व हो जाती है।
4. बारबरी
क्षेत्र - यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के एटा, आगरा, अलीगढ़ व मथुरा जिले में पाई जाती है।
पहचान
- यह छोटे आकार की गठीले शरीर वाली बकरी है।
- इसका रंग सफेद तथा शरीर पर भूरे रंग का धब्बा पाया जाता है।
- इसके कान छोटे एवं सीधे होते है तथा इसके पूंछ पीछे की ओर मुड़े होते है।
- शारीरिक वजन नर - 37kg, मादा - 22 kg
विशेषता
- यह दूध तथा मांस दोनों के लिए उपयोगी है।
- इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह कम उम्र (9-10माह) में परिपक्व हो जाती है।
- इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
- दुग्ध उत्पादन पूर्ण दुग्ध काल में 95kg तक होता है।
5. बीटल
क्षेत्र - यह पंजाब के गुरदासपुर,अमृतसर, फिरोजपुर जिलों में पाई जाती है।
पहचान
- यह नस्ल जमुनापारी से मिलता जुलता है। यह अपनी ऊंचाई एवं लंबाई के लिए जानी जाती है।
- यह मुख्यत: काले,भूरे, सफेद एवं काले रंग में सफेद धब्बों के साथ पाई जाती है।
- बीटल बकरी की पहचान इसकी रोमन नाक, लंबे लटकते हुए कान तथा लंबे पैर है।
- शारीरिक वजन नर-60-65kg, मादा-40-45kg
विशेषता
- यह दूध तथा मांस दोनों के लिए उपयोगी है।
- 12 से 18 महीने के बीच पहली बार बच्चे को जन्म देती है।
- इसका शारीरिक विकास तेजी से होता है।
- यह आसानी से किसी भी वातावरण में ढल जाती है।
- इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता पूर्ण दुग्ध काल में 150-200 लीटर (प्रतिदिन 2 से ढाई लीटर लीटर) तक होती है।
6. उस्मानाबादी
क्षेत्र - यह नस्ल महाराष्ट्र के उस्मानाबाद, परभणी, अहमदनगर और सोलपुर जिले में पाई जाती है।
पहचान
- यह आकार में बड़ी सामान्यता काले रंग की एवं शरीर पर भूरे या सफेद धब्बे होते है।
- शारीरिक वजन नर- 34kg, मादा- 32kg
विशेषता
- यह दूध और मांस दोनों के लिए उपयुक्त होती है। मुख्य रूप से इसे मांस के लिए पाला जाता है, दुग्ध उत्पादन कम होता है।
- यह बकरी सामान्यता साल में दो बार बच्चे देती है। एक साथ दो से तीन बच्चे देती है।
7. तोतापरी
क्षेत्र - यह नस्ल मुख्य रूप से राजस्थान में पाई जाती है।
पहचान
- यह आकार में मध्यम से बड़ी होती है।
- यह सामान्यत: सफेद और भूरे रंग की होती है।
- इसकी नाक तोते की तरह उठी हुई होती है एवं कान लटके हुए होते हैं।
- इसके पूंछ छोटे एवं सिंग छोटे आकार के नुकीले एवं पीछे की ओर मुड़े होते हैं।
- शारीरिक वजन नर-40-70 kg, मादा-35-55kg
विशेषता
- यह अपना संतुलन बनाए रखने के लिए जानी जाती है। यह अक्सर छोटे पेड़ों पर चढ़ जाती है।
- यह किसी भी वातावरण एवं जलवायु को आसानी से अपना लेती है।
- डेढ़ साल में दो बार एवं एक बार में सामान्यत: दो बच्चे देती है।इसके बच्चे का वजन 2-2.5kg तक होता है।
- संतुलित आहार देने पर यह प्रतिदिन 1-2 लीटर दूध दे सकती है।
Very nice information...
ReplyDeleteKon si website ki bat kr rhe ho tum jiska koi existence hi nhi h uska content koi kya copy krega. Aur pehle jail ki spelling to sahi se likh lo TB jail bhijwana ok.
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